Wednesday 27 July 2011

सोच

सोचना एक अपराध  सा बनता जा रहा हैं मेर लिए ..
कब क्या क्यूँ ? ये वो  ..ना जाने क्या क्या सवाल आते है  दिमाग मैं और जब इन सवालो के जवाबों को तलाशने जाता हूँ तो नजाने मन कहाँ भटक जाता है दिल साला कही और की सोचने लगता ..
ये साली सोच बड़ी ही खतरनाक चीज है ना जाने किसको क्या बना देती हैं चूतिये को सुपर हीरो, और हीरो को सुपर विल्लन बन देती है 
एक सोच मेरी भी .....एक क्या अनेको चीजो को सोचता हूँ एक साथ ....इसी के चलते सब रिश्ते नाते दोस्त प्यार व्यार सब साला भुला बैठा हूँ 
अजीब सा हो गया हूँ इस सोच के चलते ....या अजीब था और अजीब सोचने लगा हूँ और अब जो हूँ वो दोनों का मिश्रित फल हैं 
जमाना हो गया किसी दोस्त से बात किये ...सोचता हूँ क्या कभी दोस्त भी बनाये थे ?..या बस ...HI HELLO  वाले साथी थे  ?
मैं उनको शायद कभी याद कर लेता हूँ और उनसे बात करने के लिए फ़ोन उठता भी हूँ बुत ये सोच "साले उनको मैं कभी याद नहीं आता वो मेरे बारे मैं कभी नहीं "सोचते " क्या ?
या वो लोग भी ऐसी ही किसी सोच का शिकार होके मुझे और बाकि दोस्तों से दूरी बनाये हुए हैं ....?
चलो दोस्तों को तो छोड़ो ...हद तो ये है की रिश्तेदार ....तक कभी खोज खबर नहीं लेते.....चाहे मुझे कुछ भी हुआ हो  ..
मजाल हो मुझे कोई फ़ोन कर ले....सब हाल हवाल लेते है मेरी माता जी से ...पता नहीं क्यों ? 
सोच यहाँ फिर पनप जाती हैं और रिश्तेदारों से साली  दूरी अपने आप पनप जाती हैं !
कभी कभी सब से बात करना मिस करता हूँ,वो कॉलेज की मस्ती वो बचपन मैं "SO CALLED "प्यार मिस करता हूँ 
वो बुआ मासी मामा ....सब को मिस तो करता हूँ पर कभी ..अपनी सोच से हट के CONTACT नहीं करता हूँ   
सोचता हूँ सोचता हूँ ....अजीब हैं पर पता नहीं ...अब साला सोचने मैं ही सुकून मिलता हैं !