Tuesday, 18 January 2011

नींद से लड़ाई

 THIS ONE came off in general was telling something to my frnd and eventually idea of this came out

कभी नींद के आगोश से निकल के देखो ...कभी वो आती हुई नींद से लड़के देखो.. 
वो उबासी से कहना जा थोड़ी देर बाद आना...वो नींद से लड़ना करना कोई बहाना
वो बैठे बैठे आँखो को बंद होने से रोकना ज़रा, वो थोड़ी देर और कंट्रोल करना नींद को उनके लिए ज़रा..इसी मैं तो मज़ा हैं

कभी किसी से बात करते हुए सोने का मज़ा लेना ...कभी नींद मैं बात करना और कभी बात-बात मे ही नींद ले लेना
कभी इंतेजार मे किसी चीज़ की वो पल दो पल नींद की खुमारी से लड़ने का अलग ही मज़ा हैं !  बाकी - 
सोते तो सभी हैं- चादर तान-के बिस्तर मे पर वो  मस्त होके टेबल पे मूह रखके थोड़ी सी थूक निकल के ...सोने का अलग ही मज़ा हैं !

वो खुमारी मे..आके अंगड़ाई मे हाथ उठना फिर सोचना की अभी सोना क्यों?अभी तो नींद के साथ थोड़ा लड़ना-झगड़ना हैं ..मुझे....अभी तो उसके लिए जागना हैं ....यू इस तरह वो कॉफी बनाने जाती..हैं ! .....और कॉफी बनाते बनाते बेचारी मासूम खड़े खड़े एक छोटी सी झपकी लगा जाती हैं
इंतेज़ार मैं उसके वो 3-4 कप कॉफी के पी गयी साला ना वो आया और ना नींद, बेचारी क्या करे उसकी नींद तो कब की गयी ?
वो आया कुछ घंटे देर से..तडपा तडपा के उसे बस हो गयी साली लड़ाई ! ज़ालिम !
दोनो के रूठने मानने मैं साली रात जवान होके सुबह बन गयी बात जो करनी थी वो तो हुई नहीं लड़ाई परवान चढ़ गयी

अब फाइनली हीरो की लाख कोशिश और हाथ-पाँव जोड़ने के बाद हेरोइन मान गयी अपने लल्लू हीरो को पहचान गयी की उसका मोबाइल था खराब ..नेट ज़ालिम नही चल रहा था ...यह झूठ, झूठ- मूठ मान गयी ! ...फिर
फिर क्या आज की रात का वादा करके ....हेरोइन बेड मैं चादर तान गयी :)
अगली रात फिर हीरो ने नींद से करी लड़ाई पर हीरो की हेरोइन टाइम पे आई |