Wednesday 7 April 2010

दुःख

well this one came off in general ...nothing so spcl !
मैं आसमा सा विशाल हूँ, सागर सा गहरा हूँ
बर्फ की ठंडक से ठंडा हूँ, सूरज की गर्मी से गरम हूँ
मैं सर्व विद्यमान हूँ, मैं "दुःख" हूँ
आता हूँ जाता हूँ ....और फिर से लौट के आता हूँ
कभी कम कभी जादा....तुमको सताता हूँ
रात-दिन, सुबह या शाम, कभी नहीं भुला पाते हो तुम मेरा नाम
सुख मैं भी मेरे न आने की कामना करते हो
तुम मुझे अपनी ज़िन्दगी से कहाँ अलग करते हो
कभी आता हूँ कभी तुम खुद मुझे लेके आते हो
दुःख कब जायेगा ज़िन्दगी से,  प्रभु से बस ये ही गुहार लगते हो 
किसी के दुःख से दुखी होते हो और किसी के दुःख को देख लेते मज़ा
मैं "दुःख" लाता हूँ ज़िन्दगी मैं सज़ा
मैं चिरस्थायी हूँ, जीवंत हूँ ..... मैं हूँ सर्वगामी,
मैं ही हूँ ओ मानव तुम्हारे बुरे वक्त का स्वामी
कुछ लोग दुःख मैं भी खुश रह पते हैं
ऐसे  ही लोग ज़िन्दगी मैं आगे बढ़ पाते हैं
.दुःख को बुरे वक्त मैं अपना साथी बनाओ ....इस दुःख से डर  के नज़र न चुराओ
 दुःख मैं डटे रहो हारो ना लड़ने से पहले तुम  खो ना देना आस
दुःख ही करता हैं सुख को सुखी का  आभास