सूखी सी नदी हूँ अपना साहिल चाहता हूँ
बरगद का सूखा पेड़ हूँ , एक बार फ़िर से पतझड़ चाहता हूँ
बंजर ज़मीन हूँ , थोडी धूप चाहता हूँ
गरीब का पापी पेट हूँ थोडी भूक और चाहता हूँ
अंधे की आँखों की ज्योति हूँ, थोड़ा और अन्धकार चाहता हूँ
गरीबी हूँ पैसे की थोडी मार और चाहता हूँ
छोटे से बच्चे के दिल से निकली इच्छा हूँ थोड़ा तिरस्कार चाहता हूँ
एक छोटा सा घाव हूँ थोड़ा और दर्द चाहता हूँ
एक अधूरी दास्ताँ होऊँ अपना अंत छटा हूँ
एक टूटी डोर हूँ , एक पक्की गांठ चाहता हूँ
आस्था हूँ बस थोड़ा सा विशवास चाहता हूँ
मासूम बचपन हूँ थोड़ा सा प्यार चाहता हूँ
यूँ तो खुश हूँ पर खुशी के और पल चार चाहता हूँ
दोस्त बहुत हैं पर हर मोड़ पे नया यार चाहता हूँ
बारिश की बूँद का मिटटी से स्पर्श हूँ, यही मिलन हर बार चाहता हूँ
राहे खो चुका हूँ अपनी मंजिल को चाहता हूँ
ज़िन्दगी को खुल के जीता हूँ, बस ज़रा प्यार चाहता हूँ
मैं अपने चाहने की चाहत को चाहता हूँ
----------------------------------------------------
Biren Bhatia
No comments:
Post a Comment