Wednesday 10 August 2011

कुछ दोस्त

कुछ दोस्त यूहीं जुड़ते हैं फिर भीड़ मैं खो जाते हैं , और कई चेहरे इस दोस्त खाने वाली भीड़ मे अपने से नज़र आते हैं
कुछ हमें छोड़ देते हैं और कुछ को हम पीछे छोड़ आते हैं , ना जाने कितने नए चेहरों से 'हम' जुड़ जाते हैं
हम पुराने दोस्तों को खोके  उनकी यादों  को भी भीड़ मैं खो देते हैं, पर
असलियत तो ये हैं उनकी यादे हमारे ज़हन के किसी भीतरी कोने मैं छुपी होती हैं
और जब भी हमें वो यादे याद आते हैं .,..आँखों मैं नमी और लबो पे हसी ले आते हैं
हमें हमारे  बीते वक़्त मैं ले जाते है , वो मस्ती वो मज़ा वो प्यार वो तकरार वो बात बात पे लड़ना और वो यू पल मैं ही मन जाना
वो पैसे जुगाड़ करके मूवी जाना, और मूवी से जादा बाजु मैं बैठे couple को देखना
वो बिना प्लान करी गयी ट्रिप्स वो सारे मजाक वो बात बात मे टांग खीचना
आप सोचते हैं आप भुला चुके है पर आपके ज़हन के किसी कोने मैं वो अभी भी छुपी होती हैं .....
हम नए दोस्त तो बना लेते हैं .....पर उनमें भी हमारे पुराने दोस्तों को तलाशते है .....
बिलकुल उसके जैसा हैं ...क्या यार इसे क्यूँ दोस्त बनाया इससे आचा तो अपना XYZ  था
बस इसी सोच विचार मैं इसी तरह से बदलती दोस्ती और प्यार मैं हम जीते जाते हैं
भीड़ मे  ही दोस्तों को खोते हैं और उसी दोस्त खाने वाली भीड़ मैं से नए दोस्त बना जाते हैं  .......

2 comments:

saurabh said...

Nice one,Gud one,very well written.Thumbs up to u

Biren said...

Thanks saurabh !