Sunday 1 March 2009

अजीब

सुबह से रात शुरू हो जाती है खामोशियों मैं बात शुरू हो जाती है
रात को सुबह माना है , मैंने अपने सिवा बाकि सभी को जाना है
पेड़ की छावं मैं शरीर जलता है , रेगिस्तान का सूरज मुझे सर्द करता है
घड़ी के कांटे उल्टे चलते नज़र आते है, दिसम्बर के बाद नवम्बर और फ़िर अगस्त आता दिखने लगता है
मान परेशां हो उठता है तो थका लगता हूँ, और खुस होता हूँ तो गुम्सुस्म हो जाता हूँ
जी हाँ मैं अदाकार हूँ, कलाकार हूँ अपने भावः छुपाना जनता हूँ
चाहे जो हो कहा जाता हैं "शो मुस्त गो ओन्" बस यही एक बात जानता हूँ
सुबह को दिन मानता हूँ, और वास्तविकता से सबको दूर ले जाता हूँ
मैं अदाकार हूँ अपने मध्यम से आपको सपने दिखता हूँ , आपका बस थोड़ा ध्यान चाहता हूँ
कभी हस्ते हस्ते रोता हूँ कभी झूट मैं मर जाता हूँ कभी बिना चोट के खून निकालता हूँ
और कभी रोते हुए भी आपको हसता हूँ, मेरा कोई अस्तित्व नहीं हैं
बस आत्मा जिससे शरीर बदलती हैं मैं किरदार बदलता हूँ, और आपको नायेपान की फीलिंग देता हूँ
जी हाँ मैं किरदार के साथ जीने लगता हूँ, वैसा सोचने लगता हूँ
फ़िर थोड़े दिनों मैं उस किरदार की हत्या करके नए किरदार को अपनाता हूँ
ऐसा नजाने कितने लोगो के खून का इल्जाम, इस खयाली दुनिया मैं अपने सर पे लगाता हूँ
मैं अदाकार हूँ बस अदाकारी जानता हूँ, प्यार, नफरत बस भावः हैं यही मानता हों
प्यार होता है कभी या नफरत हो जाती हैं तो उसे किसी नए किरदार मैं उतरता हूँ
अदाकार हूँ मुझे बस यही शिकायत हैं ख़ुद से की मेरी
सुबह से रात शुरू हो जाती है खामोशियों मैं बात शुरू हो जाती है
रात को सुबह माना है , मैंने अपने सिवा बाकि सभी को जाना है

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